गुरुवार, 15 सितंबर 2016
Astrology: श्राद्ध पक्ष
Astrology: श्राद्ध पक्ष: पुराणों के अनुसार देवताओं का पूजन करने से पेहले मनुष्यों को अपने पूर्वजो यानि पितृओका पूजन करना चाहिए | हमारे यहाँ मृत्यु के बाद अपने पूर्...
श्राद्ध पक्ष
पुराणों के अनुसार देवताओं का पूजन करने से पेहले मनुष्यों को अपने पूर्वजो यानि पितृओका पूजन करना चाहिए | हमारे यहाँ मृत्यु के बाद अपने पूर्वजो के तृप्ति के लिए श्राद्ध करना बताया गया हे और श्राद्ध करना बहुत जरुरी भी बताया गया हे | अनेक मान्यता के अनुसार यदि अपने स्वजन या पुर्वज की मृत्यु हो जाती हे तो उसकी आत्मा की तृप्ति के लिए यदि जो श्राद्ध कर्म नहीं करते तो उनकी आत्मा को इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और हमारे पितृ की यही इच्छा होती हे की उनकी संतान या उनके परिवार वाले श्राद्ध यादी कार्य करके उनकी आत्मा को इस लोक से मुक्त करे | श्राद्ध कार्य करके अपने पूर्वजो को प्रसन करना चाहिए | कुंडली में पितृ दोष के निवारण के लिए भी श्राद्ध करना अनिवार्य हे |
हमें अपने पूर्वजो की आत्मा की शान्ति के लिए साल में एक बार श्राद्ध यादी कार्य जरुर करना चाहिए ताकि हमारी ऊपर पित्रुकी कृपा बनी रहे | पितृ की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के समय को पितृ पक्ष यानि श्राद्ध केहते हे | मान्यता हे की यही समयमे यमराज कुछ समय यानि श्राद्ध समाप्त हो तब तक पितृ को आजाद करते हे ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सके |
पुराण और ज्योतिष के अनुसार अगर पितृ रुष्ट हो जाये तो मनुष्य के जीवनमे कई समस्याओ का सामना करना पड़ता हे | पितृ की अशांति के कारण धन हानी और संतान से समस्याओ का भी सामना करना पड़ता हे |
यदि मनुष्य को संतति और संपति की प्राप्ति करनी हो या इसके सामान यदि कोई रूकावट आये तो ऐसे मनुष्यों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कार्य अवश्य करना चाहिए |
पितृ के श्राद्ध में तिल, चावल, जौ,वस्त्र, आदि को अधिक महत्व् दिया जाता हे | श्राद्ध में तिल और कुशा का अधिक महत्व होता हे | श्राद्ध में पितृ को अर्पित भोजन को पिंड के रुपमे अर्पित करना चाहिए |
श्राद्ध करने का अधिकार पुत्र,भाई, पौत्र, प्रपौत्र, समेत महिलाओ को भी होता हे |
श्राद्ध में कौए का भी महत्व बताया गया हे | कौए को पितृ का रूप माना जाता हे | अनेक मान्यता के अनुसार श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए के रूप धारण करके नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हे | अगर उन्हें श्राद्ध में भोजन नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हे | इस कारण श्राद्ध का प्रथम भाग कौए के दिया जाता हे |
सरल शब्दों में समजा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रधा पूर्वक याद किया जाना हे | यदि किसी परिजन की मृत्यु तृतीय तिथि को हुई तो उनका श्राद्ध तृतीय तिथि पर ही करना चाहिए | इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता हे |
महत्व पूर्ण श्राद्ध
पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन किया जाता हे |
माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता हे |
जिन परिजनो की अकाल मृत्यु हुई हो यानि किसी दुर्घटना या आत्म हत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता हे |
साधू और सन्यासीयो का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता हे |
जिन पितृ की मृत्यु की तिथि याद नहीं हे उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता हे |इस दिनको सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता हे |
2016 में पितृ पक्ष श्राद्ध की तिथिया
तारीख दिन श्राद्धतिथि
16 सितंबर-- शुक्रवार पूर्णिमा श्राद्ध
17 सितंबर-- शनिवार प्रतिपदा
18 सितंबर-- रविवार द्वितीया
19 सितंबर -- सोमवार तृतीया -चतुर्थी (एक साथ)
20 सितंबर -- मंगलवार पंचमी तिथि
21 सितंबर -- बुधवार षष्ठी तिथि
22 सितंबर -- गुरुवार सप्तमी तिथि
23 सितंबर -- शुक्रवार अष्टमी तिथि
24 सितंबर -- शनिवार नवमी तिथि
25 सितंबर -- रविवार दशमी तिथि
26 सितंबर -- सोमवार एकादशी तिथि
27 सितंबर -- मंगलवार द्वादशी तिथि
28 सितंबर -- बुधवार त्रयोदशी तिथि
29 सितंबर -- गुरुवार अमावस्या व् सर्वपितृ श्राद्ध
हमें अपने पूर्वजो की आत्मा की शान्ति के लिए साल में एक बार श्राद्ध यादी कार्य जरुर करना चाहिए ताकि हमारी ऊपर पित्रुकी कृपा बनी रहे | पितृ की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के समय को पितृ पक्ष यानि श्राद्ध केहते हे | मान्यता हे की यही समयमे यमराज कुछ समय यानि श्राद्ध समाप्त हो तब तक पितृ को आजाद करते हे ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सके |
पुराण और ज्योतिष के अनुसार अगर पितृ रुष्ट हो जाये तो मनुष्य के जीवनमे कई समस्याओ का सामना करना पड़ता हे | पितृ की अशांति के कारण धन हानी और संतान से समस्याओ का भी सामना करना पड़ता हे |
यदि मनुष्य को संतति और संपति की प्राप्ति करनी हो या इसके सामान यदि कोई रूकावट आये तो ऐसे मनुष्यों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कार्य अवश्य करना चाहिए |
पितृ के श्राद्ध में तिल, चावल, जौ,वस्त्र, आदि को अधिक महत्व् दिया जाता हे | श्राद्ध में तिल और कुशा का अधिक महत्व होता हे | श्राद्ध में पितृ को अर्पित भोजन को पिंड के रुपमे अर्पित करना चाहिए |
श्राद्ध करने का अधिकार पुत्र,भाई, पौत्र, प्रपौत्र, समेत महिलाओ को भी होता हे |
श्राद्ध में कौए का भी महत्व बताया गया हे | कौए को पितृ का रूप माना जाता हे | अनेक मान्यता के अनुसार श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए के रूप धारण करके नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हे | अगर उन्हें श्राद्ध में भोजन नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हे | इस कारण श्राद्ध का प्रथम भाग कौए के दिया जाता हे |
सरल शब्दों में समजा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रधा पूर्वक याद किया जाना हे | यदि किसी परिजन की मृत्यु तृतीय तिथि को हुई तो उनका श्राद्ध तृतीय तिथि पर ही करना चाहिए | इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता हे |
पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन किया जाता हे |
माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता हे |
जिन परिजनो की अकाल मृत्यु हुई हो यानि किसी दुर्घटना या आत्म हत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता हे |
साधू और सन्यासीयो का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता हे |
जिन पितृ की मृत्यु की तिथि याद नहीं हे उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता हे |इस दिनको सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता हे |
2016 में पितृ पक्ष श्राद्ध की तिथिया
तारीख दिन श्राद्धतिथि
16 सितंबर-- शुक्रवार पूर्णिमा श्राद्ध
17 सितंबर-- शनिवार प्रतिपदा
18 सितंबर-- रविवार द्वितीया
19 सितंबर -- सोमवार तृतीया -चतुर्थी (एक साथ)
20 सितंबर -- मंगलवार पंचमी तिथि
21 सितंबर -- बुधवार षष्ठी तिथि
22 सितंबर -- गुरुवार सप्तमी तिथि
23 सितंबर -- शुक्रवार अष्टमी तिथि
24 सितंबर -- शनिवार नवमी तिथि
25 सितंबर -- रविवार दशमी तिथि
26 सितंबर -- सोमवार एकादशी तिथि
27 सितंबर -- मंगलवार द्वादशी तिथि
28 सितंबर -- बुधवार त्रयोदशी तिथि
29 सितंबर -- गुरुवार अमावस्या व् सर्वपितृ श्राद्ध
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