गुरुवार, 31 दिसंबर 2015
सूर्य का मेष वृषभ मिथुन कर्क राशी में प्रभाव
1.मेष राशी में सूर्य
जन्म के समय सूर्य मेष राशिमे उच्चका होता हे .उसका फल जीवनभर मनुष्य आथक मेहनत करनार स्वमानी,नई विचार धारा वाला,उग्र स्वभाव का,बुलन्द आत्म विश्वास धारण करनार ,और एक कार्य पूरा करके दूसरा कार्य शरु करनार होता हे.उसका जीवन आयु की साथ उसका भाग्यो दय होता हे.मित्रो में वृधि होती हे,और जन्म कुण्डली के अन्य ग्रहों शुभ हुवे तो वो सत्ताधीश भी बनसकता हे. राजकीय दाव पेंच,छड कपट के भोग ऐसे जातक बनते हे और बादमे ऐसी निति सिख भी लेतेहे.
2.वृषभ राशिमे सूर्य
वृषभ राशिमे सूर्य वाले जातको थोड़े ज्यादा खोराक ग्रहण करने वाले,भोगी,मस्त रहने वाले,बार बार प्रवास करनार,दयालु,थोड़े उदार,स्वार्थ की वृति वाले होते हे.
3.मिथुन राशिमे सूर्य
मिथुन राशिमे सूर्य वाले जातके बुलन्द आवाज वाले अन्यथा शरीर धारण करनार पितवर्ण (जो सूर्य स्थान बदलनार अन्यथा लग्नेश के साथ सबंध धारण करनार होता हे तो ) वाले कम रोग शक्ति वाले,नेतृत्व के गुण धारण करनार,सुन्दर आखों वाले और कोइक बार घुमावदार बाल वाले होते हे.
4.कर्क राशिमे सूर्य
कर्क राशी वाले जातको प्रभावशाली कोइक बार विचार शील ज्यादा भौतिक शुख पानेकी कोसिस करनार समय के अनुसार अपनेआपको बदलने की कोसिस करने वाले फेशन को ज्यादा समजने वाले होते हे.
आगे दूसरी राशीओ में सूर्य के बारेमे जानेगे
जन्म के समय सूर्य मेष राशिमे उच्चका होता हे .उसका फल जीवनभर मनुष्य आथक मेहनत करनार स्वमानी,नई विचार धारा वाला,उग्र स्वभाव का,बुलन्द आत्म विश्वास धारण करनार ,और एक कार्य पूरा करके दूसरा कार्य शरु करनार होता हे.उसका जीवन आयु की साथ उसका भाग्यो दय होता हे.मित्रो में वृधि होती हे,और जन्म कुण्डली के अन्य ग्रहों शुभ हुवे तो वो सत्ताधीश भी बनसकता हे. राजकीय दाव पेंच,छड कपट के भोग ऐसे जातक बनते हे और बादमे ऐसी निति सिख भी लेतेहे.
2.वृषभ राशिमे सूर्य
वृषभ राशिमे सूर्य वाले जातको थोड़े ज्यादा खोराक ग्रहण करने वाले,भोगी,मस्त रहने वाले,बार बार प्रवास करनार,दयालु,थोड़े उदार,स्वार्थ की वृति वाले होते हे.
3.मिथुन राशिमे सूर्य
मिथुन राशिमे सूर्य वाले जातके बुलन्द आवाज वाले अन्यथा शरीर धारण करनार पितवर्ण (जो सूर्य स्थान बदलनार अन्यथा लग्नेश के साथ सबंध धारण करनार होता हे तो ) वाले कम रोग शक्ति वाले,नेतृत्व के गुण धारण करनार,सुन्दर आखों वाले और कोइक बार घुमावदार बाल वाले होते हे.
4.कर्क राशिमे सूर्य
कर्क राशी वाले जातको प्रभावशाली कोइक बार विचार शील ज्यादा भौतिक शुख पानेकी कोसिस करनार समय के अनुसार अपनेआपको बदलने की कोसिस करने वाले फेशन को ज्यादा समजने वाले होते हे.
आगे दूसरी राशीओ में सूर्य के बारेमे जानेगे
सूर्य ग्रह
सूर्य को सूर्यनारायण कहा जाता हे,सूर्य पृथ्वीके ऊपर जीवनको बनाए रखानार हे, ग्रहोमे प्रथम और सबसे बड़ा और श्रेठ हे,बारह मास में बारह विभिन्न नाम धारण करता हे,वेदों के मंत्रोमे उसे महान कहा गया हे,वो धाता भी हे और विधाता (प्रजापति)भी बताया गया हे,वो रौद्र भी हे,और सौम्य भी हे,पृथ्वीके सर्जन पालन और पोषण विनाश के कारण भी बताया गया हे,
सभी ग्रहों की स्थिति सूर्य की आसपास हे,समय और नियम सूर्य के आभारी हे,ऐसे अनेक स्थूल सूर्य के देवता सूर्य नारायण हे,इसके भगवान इश्वर हे,तीनो लोकोकी शक्ति जिसमे हे,सूर्य नारायणके बारह नाम हे,बारह सूर्य के अनुसार बारह मास बनानेमे आया हे, एसेतो सूर्य यानिके हाइड्रोजन हीलियम,हाइड्रोजन हीलियम में परिवर्तन होनेके कारण उर्जा प्रकास मिलता हे येतो हुवी प्राथमिक ज्ञान की बात जो आजका विज्ञान केहता हे.
उपरोक्त माहिती के बाद सूर्य जन्मकुंडली में केसा फल देताहे वो देखेगे.
सूर्य स्वगृही-उच्चका बलवान होगा और कुंडली के जो स्थान में होगा उस स्थानका सुख मिलने देता नहीं,जेसेकी श्री राम की कुंडली में दशमे उच्चका सूर्य था जो पिता के सुख में अवरोधक हुवा,और भगवान श्री कृष्ण की कुंडली में चोथे स्थान में स्वगृही सूर्य था जो मात्रु सुख में अवरोधक हुवा, ये बात हुवि प्राथमिक नजरियेकी किन्तु विस्तार से विचार विमर्स से देखेगे तो भगवान श्री रामचन्द्र के लौकिक पिता और सत्ता से युवा अवस्थामे सूर्य ने दूर रखा किन्तु श्री रामचन्द्रजी ने परम पिता स्वरूप इस्वरकी कृपासे पिता से एक पुत्र को जो मिलता वो सम्पूर्ण वात्सल्य मार्गदर्शन ज्ञान वगेरे पिता के पास से मिला और पिता तुल्य गुरु वशिष्ठ का मार्गदर्शन मिला. ऐसे ही भगवान श्री कृष्ण के चोथे स्थान में सूर्य जन्मदाता माता तथा जन्म स्थान से तो दूर रखा किन्तु यशोदा जेसी बहुत प्यार करनार पालक माता और दुसरे हजारो गोकुल की महिलाये जो कृष्ण को अपना पुत्र इच्छति उसका शुख मिला,केहनेका अर्थ हे की सूर्य स्थान और बल के अनुसार फलकथन करनेमे बहुत ध्यान देना पड़ता हे
सामान्यत: देखेगेकी सूर्य की राशी अनुसार और स्थान अनुसार फलकथन में निचे दिए गए अनुसार प्राप्त होता हे,सूर्यनारायणकी कृपा हुवे और जन्म समय के और गोचर के अनिष्ट अरिष्ट फल के विनाश के लिए ब्रह्माजीने ब्राह्मणोंको गायत्री मंत्र और त्रिसंध्या का विधान और ज्ञान दिया,इसी लिए ब्राह्मणों ही अन्य किसीभी व्यक्ति (यजमान )के लिए धार्मिक विधि और पूजा यग्न आदि कार्य करते हे.
गायत्री की उपासना करनार और संध्योपासक ब्राह्मण परम तेजस्वीता धारण करता हे,जिसके लिए वेद पुराण में अनेको बार संध्योपासना और गायत्री का जप करनेका आग्रह के साथ आदेश दिया गया हे.
सूर्य जन्म कुंडली में कोनसी राशी में हे उसके अनुसार भिन्न भिन्न फल प्राप्त होता हे,हम आगे सूर्य कोनसी राशिमे क्या फल देता हे वो आगे देखेगे
सभी ग्रहों की स्थिति सूर्य की आसपास हे,समय और नियम सूर्य के आभारी हे,ऐसे अनेक स्थूल सूर्य के देवता सूर्य नारायण हे,इसके भगवान इश्वर हे,तीनो लोकोकी शक्ति जिसमे हे,सूर्य नारायणके बारह नाम हे,बारह सूर्य के अनुसार बारह मास बनानेमे आया हे, एसेतो सूर्य यानिके हाइड्रोजन हीलियम,हाइड्रोजन हीलियम में परिवर्तन होनेके कारण उर्जा प्रकास मिलता हे येतो हुवी प्राथमिक ज्ञान की बात जो आजका विज्ञान केहता हे.
उपरोक्त माहिती के बाद सूर्य जन्मकुंडली में केसा फल देताहे वो देखेगे.
सूर्य स्वगृही-उच्चका बलवान होगा और कुंडली के जो स्थान में होगा उस स्थानका सुख मिलने देता नहीं,जेसेकी श्री राम की कुंडली में दशमे उच्चका सूर्य था जो पिता के सुख में अवरोधक हुवा,और भगवान श्री कृष्ण की कुंडली में चोथे स्थान में स्वगृही सूर्य था जो मात्रु सुख में अवरोधक हुवा, ये बात हुवि प्राथमिक नजरियेकी किन्तु विस्तार से विचार विमर्स से देखेगे तो भगवान श्री रामचन्द्र के लौकिक पिता और सत्ता से युवा अवस्थामे सूर्य ने दूर रखा किन्तु श्री रामचन्द्रजी ने परम पिता स्वरूप इस्वरकी कृपासे पिता से एक पुत्र को जो मिलता वो सम्पूर्ण वात्सल्य मार्गदर्शन ज्ञान वगेरे पिता के पास से मिला और पिता तुल्य गुरु वशिष्ठ का मार्गदर्शन मिला. ऐसे ही भगवान श्री कृष्ण के चोथे स्थान में सूर्य जन्मदाता माता तथा जन्म स्थान से तो दूर रखा किन्तु यशोदा जेसी बहुत प्यार करनार पालक माता और दुसरे हजारो गोकुल की महिलाये जो कृष्ण को अपना पुत्र इच्छति उसका शुख मिला,केहनेका अर्थ हे की सूर्य स्थान और बल के अनुसार फलकथन करनेमे बहुत ध्यान देना पड़ता हे
सामान्यत: देखेगेकी सूर्य की राशी अनुसार और स्थान अनुसार फलकथन में निचे दिए गए अनुसार प्राप्त होता हे,सूर्यनारायणकी कृपा हुवे और जन्म समय के और गोचर के अनिष्ट अरिष्ट फल के विनाश के लिए ब्रह्माजीने ब्राह्मणोंको गायत्री मंत्र और त्रिसंध्या का विधान और ज्ञान दिया,इसी लिए ब्राह्मणों ही अन्य किसीभी व्यक्ति (यजमान )के लिए धार्मिक विधि और पूजा यग्न आदि कार्य करते हे.
गायत्री की उपासना करनार और संध्योपासक ब्राह्मण परम तेजस्वीता धारण करता हे,जिसके लिए वेद पुराण में अनेको बार संध्योपासना और गायत्री का जप करनेका आग्रह के साथ आदेश दिया गया हे.
सूर्य जन्म कुंडली में कोनसी राशी में हे उसके अनुसार भिन्न भिन्न फल प्राप्त होता हे,हम आगे सूर्य कोनसी राशिमे क्या फल देता हे वो आगे देखेगे
बुधवार, 23 दिसंबर 2015
पंचांग माहिती
मित्रो चन्द्र,सूर्य और पृथ्वी के परिभ्रमण और परस्पर के अंतर से तिथि बनती हे. देव कार्य करने के लिए शुक्ल पक्ष, और पितृ कार्य करने के लिए कृष्ण पक्ष लेने चाहिए इसी प्रकार एक माह में दो पक्ष हे.
तिथिओके नाम: -
(1) प्रतिपदा, (2) द्वितीय , (3) तृतीया, (4) चतुर्थी, (5) पंचमी , (6) षष्ठी,(7 ) सप्तमी, (8) अष्टमी , (9) नवमी , (10)दसमी , (11) एकादशी , (12)द्वादशी , (13)त्रयोदशी , (14) चतुर्दशी, (15) शुक्ल पक्षमे पूर्णिमा और (16) कृष्ण पक्षमे अमावश्य जाननी चाहिए ।
सप्ताह के दिन
(1) रविवार, (2) सोमवार, (3) मंगलवार, (4) बुधवार, (5) गुरुवार, (6) शुक्रवार, (7) शनिवार,
ये सप्ताह के सात दिनोके नाम कहे गए हे.
सोम, बुध, गुरु, शुक्र इस चार वार को शुभ कहा गया हे,इस लिए शुभ कार्य करने के लिए श्रेढ है।
मंगल, सूर्य,और शनि इन तीनो दिनको दिन कहे गए हे क्रूर कार्य करने के लिए अनुकूलित है।
बृहस्पति, शुक्र, और रविवार के जो दोष हे वे रात्रि को नहीं( दिन मेही हे) ।
सोम, शनि, मंगल,के जो दोष हे वे दिन को नहीं (रात्रिके हे )।
और बुधवार के दोष दिन और रात्रि दोनों समय हे. इस लिए बुधवार के दिन शुभ कार्य करना नहीं और विवाहित कन्या को विदा नहीं करना चाहिए
योग के नाम : -
(1) विष्कुम्भ , (2) प्रीति, (3) आयुष्मान , (4) सौभाग्य , (5) शोभन , (6) अतिगंड , (7) सुकर्मा, (8) धृति ,(9),शूल , (10),गंड (11)वृधि,(12)ध्रुव,(13)व्याघात,(14)हर्षण,(15)वज्र,(16)सिधि,(17)व्यतिपात ,(18)वरियान,(19)परिघ,(20)शिव,(21)सिध्ध,(22)साध्य,(23)शुभ,(24)शुक्ल,(25)ब्रह्मा,(26)इंद्र,(27)वैधृत , इस प्रकार योगोके नाम हे और वे नाम के अनुसार फल देते हे,
करण के नाम
(1)बव (2) बालव (3)कौलव (4)तैतिल (5)गर (6)वणिज (7)विष्टि (8)शकुनि(9) नाग (10)चतुस्पद(11) किस्तुघं
इस प्रकार मुख्य सात करण हे और इसके अलावा कृष्ण पक्ष की चतुर दशी के उतराध में शकुनी, अमावश्य के पूर्वार्ध में चतुस्पद, अमावस्या के उतरार्ध में नाग, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुन्घ, इस प्रकार ग्यारह करण कहे गए हे.
नक्षत्रो के नाम
(1) अश्विनी, (2) भरनी , (3) कृतिका , (4) रोहिणी, (5)मृगशीर्ष, (6) आद्रा, (7) पुनर्वसु, (8) पुष्य, (9) आश्लेषा, (10) मघा, (11) पूर्वाफाल्गुनी , (12) उतराफल्गुनी, (13) हस्त, (14) चित्रा,(15) स्वाती, (16), विशाखा, (17) अनुराधा (18) ज्येष्ठा, (19) मूल, (20) पूर्वाषाढ़ा, (21) उतराषाढ़ा, (22) अभिजीत, (23) श्रवण , (24) धनिष्ठा, (25) शतभिषा, (26) पूर्वाभाद्रपद, (27)उतरार्भाद्रपद , (28) रेवती (29)अभिजित
उतराषाढ़ा का चोथा चरण और श्रवण नक्षत्र की पहली चार घडी अभिजित नक्षत्र का भोग समय कहागया हे इसलिए अभिजित को नक्षत्र कहा गया हे ,
इस तिथि,वार,नक्षत्र, योग,करण, इस पांच से पंचांग बनता हे, पृथ्वी के परिभ्रमण और ग्रहों नक्षत्रो के परस्पर के अंतर से कुंडली देखि जाती हे ऐसे तो कुंडली यानिके आकाश का नक्षा अहोरात्र मतलब सूर्योदय से सूर्योदय तक का समय, जेसेकी रविवार अहोरात्र रविवारके सुयोदय से पूरा दिन और रात्रि 24 घंटे तक का समय । मानलीजिये की बुधवार की सुबह सूर्योदय 7:28:12 । सूर्यास्त समय 18:12:18 हे , दिनका समय 10:44:06 इनको 12 भाग करना एसे कुल 12 दिनके भाग और 12 रात्रि के भाग एसे कुल 24 इस भाग को होरा कहाजाता हे, जिस दिनकी होरा देखनी हो उस दिनके वारकी होरा सूर्योदय से गिननी चाहिए जेसेकी बुध वार की प्रथम होरा बुध की (लाभ ), येतो हुवी ज्योतिषकी प्राथमिक माहिती अब हम समझ सकते हैं क्या कुंडली में विस्तार से लिखा है, अब हम ग्रहों के परिचय और उसके जन्म कुंडली में प्रभाव और मनुष्य जीवन के ऊपर ग्रहोंके प्रभाव के बारेमे जानेगे.
ग्रहों
(1) सूर्य (2) चन्द्र, (3) मंगल, (4) बुध, (5) बृहस्पति, (6) शुक्र, (7) शनि (8) राहू (9) केतु
उपरके नो ग्रहों से जन्मकुंडली प्रश्न्कुंडली नवमांश कुंडली बनती हे जिसमे ग्रहोके स्थान के अनुकूल फलकथन करनेमे आताहे
ग्रह क्याहे? ग्रहोका वर्णन बंधारण द्रव्य देवता स्वभाव का वर्णन देखनेमे आताहे जिसका उलेख हमें मिलते हे किन्तु वास्तवमे ऐ ग्रहों जो हम देख सकते हे और हमारे सौर मंडलमे हे विग्नान के अनुसार (चन्द्र जलका कारक,सौम्य,मनका मालिक इस प्रकार वर्णन किया जाताहे)
ऐसा वहा पर कुछ नहीं हे जेशा हमारे शास्त्रमें बताया गया हे वहा जल भी नहीं हे और जीवन भी नहीं हे तो ज्योतिष शास्त्रमे चन्द्र का वर्णन हे वो चन्द्र देवता कोन हे? कहा हे ? हम जिसे देखते हे वो चन्द्र ही हे या कोई और चन्द्र हे इसके बारेमे और अन्यं ग्रहों की विस्तृत परिचय और समजनेकी कोशिस करेगे और ग्रहोकी कुंडली पर कोनसे स्थानमे क्या प्रभाव देतेहे उसके बारेमे आगे जानेगे ...............................................
तिथिओके नाम: -
(1) प्रतिपदा, (2) द्वितीय , (3) तृतीया, (4) चतुर्थी, (5) पंचमी , (6) षष्ठी,(7 ) सप्तमी, (8) अष्टमी , (9) नवमी , (10)दसमी , (11) एकादशी , (12)द्वादशी , (13)त्रयोदशी , (14) चतुर्दशी, (15) शुक्ल पक्षमे पूर्णिमा और (16) कृष्ण पक्षमे अमावश्य जाननी चाहिए ।
सप्ताह के दिन
(1) रविवार, (2) सोमवार, (3) मंगलवार, (4) बुधवार, (5) गुरुवार, (6) शुक्रवार, (7) शनिवार,
ये सप्ताह के सात दिनोके नाम कहे गए हे.
सोम, बुध, गुरु, शुक्र इस चार वार को शुभ कहा गया हे,इस लिए शुभ कार्य करने के लिए श्रेढ है।
मंगल, सूर्य,और शनि इन तीनो दिनको दिन कहे गए हे क्रूर कार्य करने के लिए अनुकूलित है।
बृहस्पति, शुक्र, और रविवार के जो दोष हे वे रात्रि को नहीं( दिन मेही हे) ।
सोम, शनि, मंगल,के जो दोष हे वे दिन को नहीं (रात्रिके हे )।
और बुधवार के दोष दिन और रात्रि दोनों समय हे. इस लिए बुधवार के दिन शुभ कार्य करना नहीं और विवाहित कन्या को विदा नहीं करना चाहिए
योग के नाम : -
(1) विष्कुम्भ , (2) प्रीति, (3) आयुष्मान , (4) सौभाग्य , (5) शोभन , (6) अतिगंड , (7) सुकर्मा, (8) धृति ,(9),शूल , (10),गंड (11)वृधि,(12)ध्रुव,(13)व्याघात,(14)हर्षण,(15)वज्र,(16)सिधि,(17)व्यतिपात ,(18)वरियान,(19)परिघ,(20)शिव,(21)सिध्ध,(22)साध्य,(23)शुभ,(24)शुक्ल,(25)ब्रह्मा,(26)इंद्र,(27)वैधृत , इस प्रकार योगोके नाम हे और वे नाम के अनुसार फल देते हे,
करण के नाम
(1)बव (2) बालव (3)कौलव (4)तैतिल (5)गर (6)वणिज (7)विष्टि (8)शकुनि(9) नाग (10)चतुस्पद(11) किस्तुघं
इस प्रकार मुख्य सात करण हे और इसके अलावा कृष्ण पक्ष की चतुर दशी के उतराध में शकुनी, अमावश्य के पूर्वार्ध में चतुस्पद, अमावस्या के उतरार्ध में नाग, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुन्घ, इस प्रकार ग्यारह करण कहे गए हे.
नक्षत्रो के नाम
(1) अश्विनी, (2) भरनी , (3) कृतिका , (4) रोहिणी, (5)मृगशीर्ष, (6) आद्रा, (7) पुनर्वसु, (8) पुष्य, (9) आश्लेषा, (10) मघा, (11) पूर्वाफाल्गुनी , (12) उतराफल्गुनी, (13) हस्त, (14) चित्रा,(15) स्वाती, (16), विशाखा, (17) अनुराधा (18) ज्येष्ठा, (19) मूल, (20) पूर्वाषाढ़ा, (21) उतराषाढ़ा, (22) अभिजीत, (23) श्रवण , (24) धनिष्ठा, (25) शतभिषा, (26) पूर्वाभाद्रपद, (27)उतरार्भाद्रपद , (28) रेवती (29)अभिजित
उतराषाढ़ा का चोथा चरण और श्रवण नक्षत्र की पहली चार घडी अभिजित नक्षत्र का भोग समय कहागया हे इसलिए अभिजित को नक्षत्र कहा गया हे ,
इस तिथि,वार,नक्षत्र, योग,करण, इस पांच से पंचांग बनता हे, पृथ्वी के परिभ्रमण और ग्रहों नक्षत्रो के परस्पर के अंतर से कुंडली देखि जाती हे ऐसे तो कुंडली यानिके आकाश का नक्षा अहोरात्र मतलब सूर्योदय से सूर्योदय तक का समय, जेसेकी रविवार अहोरात्र रविवारके सुयोदय से पूरा दिन और रात्रि 24 घंटे तक का समय । मानलीजिये की बुधवार की सुबह सूर्योदय 7:28:12 । सूर्यास्त समय 18:12:18 हे , दिनका समय 10:44:06 इनको 12 भाग करना एसे कुल 12 दिनके भाग और 12 रात्रि के भाग एसे कुल 24 इस भाग को होरा कहाजाता हे, जिस दिनकी होरा देखनी हो उस दिनके वारकी होरा सूर्योदय से गिननी चाहिए जेसेकी बुध वार की प्रथम होरा बुध की (लाभ ), येतो हुवी ज्योतिषकी प्राथमिक माहिती अब हम समझ सकते हैं क्या कुंडली में विस्तार से लिखा है, अब हम ग्रहों के परिचय और उसके जन्म कुंडली में प्रभाव और मनुष्य जीवन के ऊपर ग्रहोंके प्रभाव के बारेमे जानेगे.
ग्रहों
(1) सूर्य (2) चन्द्र, (3) मंगल, (4) बुध, (5) बृहस्पति, (6) शुक्र, (7) शनि (8) राहू (9) केतु
उपरके नो ग्रहों से जन्मकुंडली प्रश्न्कुंडली नवमांश कुंडली बनती हे जिसमे ग्रहोके स्थान के अनुकूल फलकथन करनेमे आताहे
ग्रह क्याहे? ग्रहोका वर्णन बंधारण द्रव्य देवता स्वभाव का वर्णन देखनेमे आताहे जिसका उलेख हमें मिलते हे किन्तु वास्तवमे ऐ ग्रहों जो हम देख सकते हे और हमारे सौर मंडलमे हे विग्नान के अनुसार (चन्द्र जलका कारक,सौम्य,मनका मालिक इस प्रकार वर्णन किया जाताहे)
ऐसा वहा पर कुछ नहीं हे जेशा हमारे शास्त्रमें बताया गया हे वहा जल भी नहीं हे और जीवन भी नहीं हे तो ज्योतिष शास्त्रमे चन्द्र का वर्णन हे वो चन्द्र देवता कोन हे? कहा हे ? हम जिसे देखते हे वो चन्द्र ही हे या कोई और चन्द्र हे इसके बारेमे और अन्यं ग्रहों की विस्तृत परिचय और समजनेकी कोशिस करेगे और ग्रहोकी कुंडली पर कोनसे स्थानमे क्या प्रभाव देतेहे उसके बारेमे आगे जानेगे ...............................................
मंगलवार, 22 दिसंबर 2015
ज्योतिष के बारेमे आसन और सरल जानकारी
नमस्कार मित्रो , समकालीन समय में ज्योतिष के कई अवधारणा ओंर मतमतांतर हे , लेकिन यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे ऐ सनातन सत्य हे,और "सत्यम परम धीमहि "इस सूत्र को ध्यानमे लेके ज्योतिष की कोईभी संहिता,चिंतन,मत, हे बस जरुरत हे तो उसे समजनेकी .. चारों वेदों, छे शास्त्रों, और अठारह पुराण हे यह तो सबको पताही होगा ।
चारवेद: -
(1) ऋग्वेद (2) यजुर्वेद (3), साम वेद और (4) अथर्ववेद।
छह शास्त्र: -
(1) शिक्षा शात्र (2) कल्प शात्र (3) व्याकरण शात्र (4) छंद शास्त्र (5) निरुक्त शास्त्र (6) ज्योतिष शात्र
अठारा पुराण : -
(1) मत्स्य पुराण (2) मार्कंडेय पुराण (3) भविष्य पुराण (4) भागवत पुराण (5) ब्रह्म पुराण
(6) ब्रह्माण्ड पुराण (7) ब्रह्मवेवर्त पुराण (8) वराह पुराण (9) वायु पुराण (10) वामन पुराण
(11) विष्णु पुराण (12) अग्नि पुराण (13) नारद पुराण (14) पद्म पुराण (15) लिंग पुराण
(16) गरुड़ पुराण (17) कुर्म पुराण (18) स्कंद पुराण. इनमेसे हम ज्योतिष के बारे में आगे बात करेंगे .............
चारवेद: -
(1) ऋग्वेद (2) यजुर्वेद (3), साम वेद और (4) अथर्ववेद।
छह शास्त्र: -
(1) शिक्षा शात्र (2) कल्प शात्र (3) व्याकरण शात्र (4) छंद शास्त्र (5) निरुक्त शास्त्र (6) ज्योतिष शात्र
अठारा पुराण : -
(1) मत्स्य पुराण (2) मार्कंडेय पुराण (3) भविष्य पुराण (4) भागवत पुराण (5) ब्रह्म पुराण
(6) ब्रह्माण्ड पुराण (7) ब्रह्मवेवर्त पुराण (8) वराह पुराण (9) वायु पुराण (10) वामन पुराण
(11) विष्णु पुराण (12) अग्नि पुराण (13) नारद पुराण (14) पद्म पुराण (15) लिंग पुराण
(16) गरुड़ पुराण (17) कुर्म पुराण (18) स्कंद पुराण. इनमेसे हम ज्योतिष के बारे में आगे बात करेंगे .............
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