गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

सूर्य ग्रह

       सूर्य को सूर्यनारायण कहा जाता हे,सूर्य पृथ्वीके ऊपर जीवनको बनाए रखानार हे, ग्रहोमे प्रथम और सबसे बड़ा और श्रेठ हे,बारह मास में बारह विभिन्न नाम धारण करता हे,वेदों के मंत्रोमे उसे महान कहा गया हे,वो धाता भी हे और विधाता (प्रजापति)भी बताया गया हे,वो रौद्र भी हे,और सौम्य भी हे,पृथ्वीके सर्जन पालन और पोषण विनाश के कारण भी बताया गया हे,                                    

   सभी ग्रहों की स्थिति सूर्य की आसपास हे,समय और नियम सूर्य के आभारी हे,ऐसे अनेक स्थूल  सूर्य के देवता सूर्य नारायण हे,इसके भगवान इश्वर हे,तीनो लोकोकी शक्ति जिसमे हे,सूर्य नारायणके बारह नाम हे,बारह सूर्य के अनुसार बारह मास बनानेमे आया हे, एसेतो सूर्य यानिके हाइड्रोजन हीलियम,हाइड्रोजन हीलियम में परिवर्तन होनेके कारण उर्जा प्रकास मिलता हे येतो हुवी प्राथमिक ज्ञान की बात जो आजका विज्ञान केहता हे.

    उपरोक्त माहिती के बाद सूर्य जन्मकुंडली में केसा फल देताहे वो देखेगे.

  सूर्य स्वगृही-उच्चका  बलवान होगा और कुंडली के  जो स्थान में  होगा उस स्थानका सुख मिलने देता नहीं,जेसेकी श्री राम की कुंडली में दशमे उच्चका सूर्य था जो पिता के सुख में अवरोधक हुवा,और भगवान श्री कृष्ण की कुंडली में चोथे स्थान में स्वगृही सूर्य था जो मात्रु सुख में अवरोधक हुवा, ये बात हुवि प्राथमिक नजरियेकी किन्तु विस्तार से विचार विमर्स से देखेगे तो भगवान श्री रामचन्द्र के लौकिक पिता और  सत्ता से युवा अवस्थामे सूर्य ने दूर रखा किन्तु श्री रामचन्द्रजी ने परम पिता स्वरूप इस्वरकी कृपासे पिता से एक पुत्र को जो मिलता वो सम्पूर्ण  वात्सल्य मार्गदर्शन ज्ञान वगेरे पिता के पास से मिला और पिता तुल्य गुरु वशिष्ठ का मार्गदर्शन मिला.     ऐसे ही भगवान श्री कृष्ण के चोथे स्थान में सूर्य जन्मदाता माता तथा जन्म स्थान  से तो दूर रखा किन्तु यशोदा जेसी बहुत प्यार करनार पालक माता और दुसरे हजारो गोकुल की महिलाये जो कृष्ण को अपना पुत्र इच्छति उसका शुख मिला,केहनेका अर्थ हे की सूर्य स्थान और बल के अनुसार फलकथन करनेमे बहुत ध्यान देना पड़ता हे
    सामान्यत: देखेगेकी सूर्य की राशी अनुसार और स्थान अनुसार फलकथन में निचे दिए गए अनुसार प्राप्त होता हे,सूर्यनारायणकी कृपा हुवे और जन्म समय के और गोचर के अनिष्ट अरिष्ट फल के विनाश के लिए ब्रह्माजीने ब्राह्मणोंको गायत्री मंत्र और त्रिसंध्या का विधान और ज्ञान दिया,इसी लिए ब्राह्मणों ही अन्य किसीभी व्यक्ति (यजमान )के लिए धार्मिक विधि और पूजा यग्न आदि कार्य करते हे.
      गायत्री की उपासना करनार और संध्योपासक ब्राह्मण परम तेजस्वीता धारण करता हे,जिसके लिए वेद पुराण में अनेको बार संध्योपासना और गायत्री का जप करनेका आग्रह के साथ आदेश दिया गया हे.
     सूर्य जन्म कुंडली में कोनसी राशी में हे उसके अनुसार भिन्न भिन्न फल प्राप्त होता हे,हम आगे सूर्य कोनसी राशिमे क्या फल देता हे वो आगे देखेगे                                                                                                        
  

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